श्रीमद्भगवद्गीता
अथ दशमोऽध्यायः- विभूतियोग
( भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल; भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन )
अथ एकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
( अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना; भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज रूप का दिखाया जाना )
अथ द्वादशोऽध्यायः- भक्तियोग
( साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय; भगवत्-प्राप्त पुरुषों के लक्षण )
अथ त्रयोदशोऽध्यायः- क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग
( ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय; ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय )
अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग
(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति; सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय; भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण )
अथ पञ्चदशोऽध्यायः- पुरुषोत्तमयोग
( संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय; जीवात्मा का विषय; प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का विषय; क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय )
अथ षोडशोऽध्यायः- दैवासुरसम्पद्विभागयोग
( फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन; आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन; शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा )
अथ सप्तदशोऽध्यायः- श्रद्धात्रयविभागयोग
( श्रद्धा का और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय; आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद; ॐ तत्सत् के प्रयोग की व्याख्या )
अथ अष्टादशोऽध्यायः- मोक्षसंन्यासयोग
( त्याग का विषय; कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन; तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद; फल सहित वर्ण धर्म का विषय; ज्ञाननिष्ठा का विषय; भक्ति सहित कर्मयोग का विषय; श्रीगीताजी का माहात्म्य )